दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता रोनक खत्री ने एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए दिल्ली पुलिस को एक एप्लिकेशन दी है, जिसमें उन्होंने कैफे और रेस्टोरेंट में हुक्का पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। यह कदम सार्वजनिक स्वास्थ्य और युवाओं के भविष्य को सुरक्षित रखने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है।
हुक्का कल्चर: एक बढ़ती समस्या
दिल्ली के कैफे और रेस्टोरेंट में हुक्का पीने का चलन तेजी से बढ़ रहा है, खासकर युवाओं के बीच। इसे स्टाइल और मनोरंजन का हिस्सा माना जाता है, लेकिन इसके पीछे छिपे स्वास्थ्य खतरों की अनदेखी की जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, एक घंटे के हुक्का सेशन में जितना धुआं और जहरीले रसायन शरीर में जाते हैं, वह एक पूरे सिगरेट पैक के बराबर होता है।
हुक्का पीना न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि सार्वजनिक स्थानों की वायु गुणवत्ता को भी खराब करता है, जिससे वहां मौजूद गैर-धूम्रपान करने वाले लोग भी प्रभावित होते हैं।
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रोनक खत्री का प्रयास
रोनक खत्री ने इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए दिल्ली पुलिस को एक एप्लिकेशन सौंपी है। इसमें उन्होंने हुक्के से जुड़े स्वास्थ्य खतरों का जिक्र किया है, खासकर युवाओं पर इसके नकारात्मक प्रभावों का। उन्होंने यह भी कहा कि हुक्के का उपयोग और बिक्री अक्सर भारत के तंबाकू नियंत्रण कानूनों, जैसे कि सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम (COTPA), का उल्लंघन करती है।
खत्री ने हुक्के पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा कि यह कदम न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा करेगा, बल्कि तंबाकू के उपयोग को कम करने के सरकार के प्रयासों का समर्थन भी करेगा।
जनता और प्रशासन की प्रतिक्रिया
रोनक खत्री की इस पहल को मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों और अभिभावकों ने उनकी इस पहल की सराहना की है और इसे एक आवश्यक कदम बताया है। वहीं, कैफे और हुक्का लाउंज के मालिकों का कहना है कि यह प्रतिबंध उनके व्यवसाय को नुकसान पहुंचा सकता है, खासकर जब हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र अभी भी कोविड-19 महामारी के बाद उभरने की कोशिश कर रहा है।
दिल्ली पुलिस ने एप्लिकेशन मिलने की पुष्टि की है और कहा है कि इसे कानून के तहत समीक्षा के बाद आगे बढ़ाया जाएगा। पुलिस ने यह भी कहा कि वह सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्ध है।
आगे का रास्ता
हुक्के के उपयोग को लेकर यह बहस यह सवाल खड़ा करती है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सार्वजनिक स्वास्थ्य और व्यावसायिक हितों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। रोनक खत्री की यह पहल अन्य शहरों को भी इस दिशा में कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकती है।
जब तक प्रशासन इस मामले पर कोई निर्णय नहीं लेता, खत्री अपने प्रयासों को लेकर दृढ़ हैं। उन्होंने हाल ही में कहा, “यह सिर्फ हुक्का बैन करने की बात नहीं है, यह अगली पीढ़ी के लिए एक स्वस्थ वातावरण बनाने का प्रयास है।”
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दिल्ली के कैफे में हुक्का बैन करने के लिए रोनक खत्री की यह पहल दिखाती है कि कैसे एक व्यक्ति की जागरूकता और सक्रियता सार्वजनिक नीतियों को आकार दे सकती है। इस पहल के लागू होने या न होने से अलग, इससे शुरू हुई बातचीत स्वास्थ्य, सुरक्षा और जिम्मेदार व्यावसायिक प्रथाओं की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
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